कोई जरुरी नहीं
कोई जरुरी नहीं
शब्द वही कहें
जो तुम कहना चाहते हो !
वे वही कहते हैं
जो उनके हृदय में होता है
शब्दों के हृदय को पढ़ना और समझना
बेहद जरुरी है ।
तुम यह न समझो
कि शब्द केवल तुम्हारे हथियार हैं
या कि तुम इन्हें उनके खिलाफ खड़े कर सकते हो
जो निहत्थे और कमज़ोर हैं
वस्तुतः ये तो ऐसे मजबूत संसाधन हैं जो
किसी भी सत्ता के खिलाफ
जरुरत के मुताबिक
खड़े हो जाते हैं
और केवल ऐसा भी नहीं है
गोया स्वयं जिसने सृजित किया है
उनके विरुद्द भी वे खड़े हो जाते हैं
वे निष्पक्ष हो कर
परिणाम लिख देते हैं
और तुम्हारी किसी चाल से
मिटाए नहीं मिट सकता उनका कोई
प्रयुक्त या अप्रयुक्त अर्थ
फिर क्यों नाहक
शब्दों को बेवजह छेड़ते हो
और सोंचते हो
जो बोलोगे
संसद में या उससे बाहर
उसका वही अर्थ होगा
जो तुम चाहते हो ।
शब्द
वर्फ में भी आग लगा देते हैं
अपनी ध्वनियों से कन्दराओं को बजा देते हैं
वे पहाड़ों और भारी चट्टानों को
बिना किसी अन्य ताकत के
चकना-चूर कर देते हैं
उनके आगे
ईश्वर भी मंत्रवत हैं
सुनो
शब्द जंगल की तस्वीर हैं
वे कादो-माटी की तकदीर हैं
उनके आगे सत्ता झुक जाती है
वे इंसान की भूख और पेट की आग
दोनों को शामिल कर
नई दुनियां रचने में जहां-तहां
मशगूल हैं
अतः शब्दों से तुम बतियाओ
उनसे हिलो-मिलो
उनके दुःख और दर्द को समझो
वे तुम्हें अपने अर्थ का सही पता दे देंगे
पर यह कोई जरुरी नहीं
कि जो तुम कहो
वही वे करें ।
शब्द
हथियार हैं जरुर
पर उनके लिए
जो उसका इस्तेमाल
हथियार की तरह करते हैं
किन्तु
ग़र तुमने उन्हें
गलत तरह से इस्तेमाल किया तो
वे हथियार भर नहीं रह जाते
वे सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की ताकत रखते हैं
बहुत ही कम लोग समझ पाते हैं कि
वे ईश्वर के विरुद्ध खड़े हो जाने वाले ईश्वर हैं
भगवान् के विरुद्ध भगवान्
राम के विरुद्ध धोबी के दो बोल
और दशरथ के विरुद्ध भवितव्य भी वही हैं
कैकेई की भाषा की वे ही ध्वनियां हैं भाई
ज़रा सोच-समझ के शब्दों का इस्तेमाल करना
क्योंकि कोई जरुरी नहीं कि तुम जो कहना चाहो
वही ये कहें
और फिर चुप रहें
न कहने पर भी यदि तुमने
जाने-अनजाने गलत इस्तेमाल कर दिया उनका
वे बह्माण्ड को बदल सकते हैं
इसलिए
एक बात कह रहा हूँ यहां
जरा ढ़ंग से समझ लेना
शब्द तभी इस्तेमाल करना
ग़र उनसे तुम परिचित हो अन्यथा
अपरिचित से परिचय करना पहिले
तभी दोस्ती बढ़ाना
धोखा न होगा
वर्ना ये शब्द ही हैं
जो महाभारत कराते हैं
और स्वयं कृष्ण कहे जाते हैं
कृष्ण को पढ़ना और समझना जरुरी है
तभी तुम कुछ कह सकोगे
अन्यथा बेहतर है चुप रहना
कम से कम गलत बोलना तो ना होगा ।
कोई जरुरी नहीं
शब्द वही कहें
जो तुम कहना चाहते हो !
वे वही कहते हैं
जो उनके हृदय में होता है
शब्दों के हृदय को पढ़ना और समझना
बेहद जरुरी है ।
तुम यह न समझो
कि शब्द केवल तुम्हारे हथियार हैं
या कि तुम इन्हें उनके खिलाफ खड़े कर सकते हो
जो निहत्थे और कमज़ोर हैं
वस्तुतः ये तो ऐसे मजबूत संसाधन हैं जो
किसी भी सत्ता के खिलाफ
जरुरत के मुताबिक
खड़े हो जाते हैं
और केवल ऐसा भी नहीं है
गोया स्वयं जिसने सृजित किया है
उनके विरुद्द भी वे खड़े हो जाते हैं
वे निष्पक्ष हो कर
परिणाम लिख देते हैं
और तुम्हारी किसी चाल से
मिटाए नहीं मिट सकता उनका कोई
प्रयुक्त या अप्रयुक्त अर्थ
फिर क्यों नाहक
शब्दों को बेवजह छेड़ते हो
और सोंचते हो
जो बोलोगे
संसद में या उससे बाहर
उसका वही अर्थ होगा
जो तुम चाहते हो ।
शब्द
वर्फ में भी आग लगा देते हैं
अपनी ध्वनियों से कन्दराओं को बजा देते हैं
वे पहाड़ों और भारी चट्टानों को
बिना किसी अन्य ताकत के
चकना-चूर कर देते हैं
उनके आगे
ईश्वर भी मंत्रवत हैं
सुनो
शब्द जंगल की तस्वीर हैं
वे कादो-माटी की तकदीर हैं
उनके आगे सत्ता झुक जाती है
वे इंसान की भूख और पेट की आग
दोनों को शामिल कर
नई दुनियां रचने में जहां-तहां
मशगूल हैं
अतः शब्दों से तुम बतियाओ
उनसे हिलो-मिलो
उनके दुःख और दर्द को समझो
वे तुम्हें अपने अर्थ का सही पता दे देंगे
पर यह कोई जरुरी नहीं
कि जो तुम कहो
वही वे करें ।
शब्द
हथियार हैं जरुर
पर उनके लिए
जो उसका इस्तेमाल
हथियार की तरह करते हैं
किन्तु
ग़र तुमने उन्हें
गलत तरह से इस्तेमाल किया तो
वे हथियार भर नहीं रह जाते
वे सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की ताकत रखते हैं
बहुत ही कम लोग समझ पाते हैं कि
वे ईश्वर के विरुद्ध खड़े हो जाने वाले ईश्वर हैं
भगवान् के विरुद्ध भगवान्
राम के विरुद्ध धोबी के दो बोल
और दशरथ के विरुद्ध भवितव्य भी वही हैं
कैकेई की भाषा की वे ही ध्वनियां हैं भाई
ज़रा सोच-समझ के शब्दों का इस्तेमाल करना
क्योंकि कोई जरुरी नहीं कि तुम जो कहना चाहो
वही ये कहें
और फिर चुप रहें
न कहने पर भी यदि तुमने
जाने-अनजाने गलत इस्तेमाल कर दिया उनका
वे बह्माण्ड को बदल सकते हैं
इसलिए
एक बात कह रहा हूँ यहां
जरा ढ़ंग से समझ लेना
शब्द तभी इस्तेमाल करना
ग़र उनसे तुम परिचित हो अन्यथा
अपरिचित से परिचय करना पहिले
तभी दोस्ती बढ़ाना
धोखा न होगा
वर्ना ये शब्द ही हैं
जो महाभारत कराते हैं
और स्वयं कृष्ण कहे जाते हैं
कृष्ण को पढ़ना और समझना जरुरी है
तभी तुम कुछ कह सकोगे
अन्यथा बेहतर है चुप रहना
कम से कम गलत बोलना तो ना होगा ।